Hey friends,
Yesterday suddenly, going through my old stuff, I came across this poem of mine... coincidentally, I had written that in a girls' college... surrounded by a number of chicks... :) don't know for whom ;) may be you like it..
मन आज खाली सा है,
याद आती हैं वो यादें धुंधली,
हो जैसे सन्नाटा तोड़ती हुई तुम्हारी खामोशी,
नज़र आता है गुज़रे ज़मानों का वो प्यार,
झांकता हूँ जब तुम्हारी खामोशी के उस पार...
याद जब भी आता है गुज़रा हुआ वो वक़्त,
सोचता हूँ बेवफा कौन था, मैं या तुम,
राहें चुनी थीं साथ हमने, चल भी पड़े थे मगर,
चल ना पाए देर तक, मैं या तुम??
आज भी नज़र आती है उस रास्ते पे इक बड़ी दीवार,
झांकता हूँ जब तुम्हारी खामोशी के उस पार...
देखता हूँ तुम्हारी आँखों में हल्की हल्की सी नमी,
और देखता हूँ इन्ही आँखों में वो यादें धुंधली,
जब पल भर भी तनहा तनहा रहना मुश्किल मुश्किल लगता था,
और बिन तुम्हारे हर एहसास पागल पागल लगता था,
और रहना सांझ से पहले पहर तक बेकरार,
झांकता हूँ जब तुम्हारी खामोशी के उस पार...
पर क्यूँ न जाने आज इस चाँद का नूर मद्धम है,
दिल में गहरा दर्द भरा और मेरी आँखें पुरनम हैं,
रिश्तों में अधूरेपन को एक गहरी खाई है,
और हर इक रास्ते पे बस उदासी छाई है,
दीखता काला अँधेरा है क्षितिज के उस पार,
झांकता हूँ जब तुम्हारी खामोशी के उस पार...
जी रहा हूँ इसी उम्मीद में... तुम आओगी,
ज़िन्दगी के इस चमन में वही नूर फिर लोगी,
मेरे सपनों के आँगन में इक नयी चांदनी छायेगी,
और साँसे महकाने को एक नयी बयार फिर आएगी.
ढूँढता हूँ फिर मेरे जीवन में खुशियों की नयी बहार,
ढूँढता हूँ जब तुम्हारी खामोशी के उस पार...
साथ समेटेंगे हम अपने,
रह गए जो अधूरे सपने,
ज़िन्दगी के नए तराने,
खुशियों वाले नए अफ़साने,
और बरसेगा फिर प्यार,
और अब... तुम्हारी मुस्कराहट के उस पार...
Yesterday suddenly, going through my old stuff, I came across this poem of mine... coincidentally, I had written that in a girls' college... surrounded by a number of chicks... :) don't know for whom ;) may be you like it..
मन आज खाली सा है,
याद आती हैं वो यादें धुंधली,
हो जैसे सन्नाटा तोड़ती हुई तुम्हारी खामोशी,
नज़र आता है गुज़रे ज़मानों का वो प्यार,
झांकता हूँ जब तुम्हारी खामोशी के उस पार...
याद जब भी आता है गुज़रा हुआ वो वक़्त,
सोचता हूँ बेवफा कौन था, मैं या तुम,
राहें चुनी थीं साथ हमने, चल भी पड़े थे मगर,
चल ना पाए देर तक, मैं या तुम??
आज भी नज़र आती है उस रास्ते पे इक बड़ी दीवार,
झांकता हूँ जब तुम्हारी खामोशी के उस पार...
देखता हूँ तुम्हारी आँखों में हल्की हल्की सी नमी,
और देखता हूँ इन्ही आँखों में वो यादें धुंधली,
जब पल भर भी तनहा तनहा रहना मुश्किल मुश्किल लगता था,
और बिन तुम्हारे हर एहसास पागल पागल लगता था,
और रहना सांझ से पहले पहर तक बेकरार,
झांकता हूँ जब तुम्हारी खामोशी के उस पार...
पर क्यूँ न जाने आज इस चाँद का नूर मद्धम है,
दिल में गहरा दर्द भरा और मेरी आँखें पुरनम हैं,
रिश्तों में अधूरेपन को एक गहरी खाई है,
और हर इक रास्ते पे बस उदासी छाई है,
दीखता काला अँधेरा है क्षितिज के उस पार,
झांकता हूँ जब तुम्हारी खामोशी के उस पार...
जी रहा हूँ इसी उम्मीद में... तुम आओगी,
ज़िन्दगी के इस चमन में वही नूर फिर लोगी,
मेरे सपनों के आँगन में इक नयी चांदनी छायेगी,
और साँसे महकाने को एक नयी बयार फिर आएगी.
ढूँढता हूँ फिर मेरे जीवन में खुशियों की नयी बहार,
ढूँढता हूँ जब तुम्हारी खामोशी के उस पार...
साथ समेटेंगे हम अपने,
रह गए जो अधूरे सपने,
ज़िन्दगी के नए तराने,
खुशियों वाले नए अफ़साने,
और बरसेगा फिर प्यार,
और अब... तुम्हारी मुस्कराहट के उस पार...
5 comments:
beautiful!!
Arre!!!.....ye toh meri kavita hai....tumne kab chura li....???
yaar....d poem z really 'beautiful'...so mujhe laga ki its mine....koi nahi....inspire toh mujhse hi hue hoge...hai na....:)
amazinnnnn yaar tum itna accha kaise likhte ho??? chori ki hai kya???
arreee ye to hamare saath likhi thi....so v inspired u na :):)
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